देहरादून में ‘स्कॉटलैंड यार्ड’ सुलझाएगी मर्डर मिस्ट्री

मर्डर मिस्ट्री सुलझाने के लिए डीजीपी द्वारा लगाए जाने वाले ‘विदेशी सिस्टम’ से पुलिस कर्मियों का दम निकल सकता है। देहरादून में इंग्लैंड की स्कॉटलैंड यार्ड की तर्ज पर टीम गठित करने के डीजीपी के निर्णय पर सवाल उठ रहे हैं।

यह टीम मर्डर मामलों की विवेचना के लिए गठित की गई है।

बीस बरस आगे का फैसला
दरअसल, डीजीपी बीएस सिद्धू ने प्रदेश के मौजूद परिस्थितियों में काम कर रहे सिस्टम से बीस बरस आगे का फैसला लिया। हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने भी यह कहा कि हर थाने में विवेचक पृथक होना चाहिए।

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लेकिन एक थानाध्यक्ष के लिए यह सीखना जरूरी होता है कि क्षेत्र में घूम-घूम कर कैसे सूचना तंत्र मजबूत करना है और स्थानीय स्तर पर कानून व्यवस्था का सबसे ज्यादा महत्व किन कारणों से है।

अलग प्रकोष्ठ को मर्डर केस की तमाम जिम्मेदारी
मसला डीजीपी बीएस सिद्धू के मंगलवार के उस फैसले से जुड़ा है जिसमें उन्होंने चारों मैदानी जनपदों में हत्या के अपराधों में थाना पुलिस की भूमिका को कम करते हुए एक अलग प्रकोष्ठ को मर्डर केस की तमाम जिम्मेदारी दे दी है। जबकि आईपीसी, सीआरपीसी के साथ ही पुलिस एक्ट में भी थाने का बड़ा महत्व है।

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हत्या जैसे अपराध की विवेचना प्रकोष्ठ करेगा तो थाने की बेसिक जरूरत पर सवाल उठेंगे। एक थानेदार भले ही लॉ एंड ऑर्डर में व्यस्त रहे लेकिन जितना मजबूत सूचना तंत्र उसके पास होता है वह पुलिस की अन्य किसी टीम के पास नहीं हो सकता।

थाने की अनदेखी
प्रकोष्ठ का इंचार्ज निरीक्षक होगा, जबकि चारों जिलों में तीन चौथाई थाने उप-निरीक्षक वाले हैं। ऐसे में विवेचना करने वाली इंस्पेक्टर वाली टीम तो वैसे भी थाने की अनदेखी कर देगी।

ऐसे जघन्य अपराधों की विवेचना प्रकोष्ठ को दी गई तो पुलिस थाने के हिस्से केवल एफआईआर लिखने और वीवीआईपी ड्यूटी करने का ही जिम्मा बचेगा। और आपराधिक मानव वध विवेचना प्रकोष्ठ व स्थानीय पुलिस के बीच टकराव की स्थिति भी बनी रहेगी।

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